ग़ज़ल
तिरी याद को हम सँजोते रहेंगें।
अश्कों से आँखे भिगोते रहेंगें।
मिलो अब मुझे कुछ सुनो भी हमारी।
युं कब तक तिरे ख़्वाब होते रहेंगें।
सहर हो गई आप घर से निकलिए।
फ़क़त शाम तक आप सोते रहेंगें?
मलाल कुछ भी हो उसे आप जानो।
सदा हम दिली मैल धोते रहेंगें।
रहो ख़ुश सदा आरजू अब मिरी हैं।
तिरे प्यार में जान खोते रहेंगें।
कभी इक ख़ुशी भी मुनासिब मुझे हो।
सदा क्या फ़क़त साथ रोते रहेंगें।
यकीं हैं कभी तो फसल भी उगेगी।
इसी ख़्याल से बीज बोते रहेंगें।
कभी मिल न पाए हमें आप तो फिर।
तिरी याद का बोझ ढोते रहेंगें।
भरोसा "अभय" हैं कभी पार होंगे।
नहीं आप ऐसे डुबोते रहेंगें।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें