एक अनुप्रासिक घनाक्षरी
सादर समीक्षार्थ
झरना सी झरकति, झाँकति झरोखा खूब,
झलकावति चूनर, बड़ी सतरंगी है।
मुसकान मृदु मंजु, मुसकावै गोरी खूब,
कोटिन मनोज मानौ, बजावै सारंगी है।
लहर सी लहकि के, लट लहरावति है,
ललाट पर चमक, छायी बहुरंगी है।
हइ हिय हर्षावति, हलावै हवा मा हाथ,
देखति है ऐसे जैसे, जनमो से संगी है।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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