एक फागुन का अवधी छंद...
बरसति रंग बड़ा, भीगति हैं संग बड़ा,
आऔ है फागुन बहे, पछुआ सुहानी है।
गावति बसंत गीत, सबको है मनमीत,
आइने को देख देखो, गोरी हरसानी है।
निज रुप निहारिके, घूँघट मुख डारिके,
चलति है ऐसे जैसे, पति सो रिसानी हैं।
आँख कारी रेख खीच, कोमल अधर बीच,
रोज चुपके से दबी, मुस्कान मुस्कानी है।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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