*शहीद के बेटे का पिता के नाम पत्र*
जब से गये हो पापा घर छोड़ के,
अपने भी चले जाते मुंह मोड़ के।
कोई भी खिलौने नये लाता नहीं है,
रूठने पे गले से लगाता नहीं है।
कहते हैं सब मम्मी सोती रहती हैं,
पर वह छिप छिप कर रोती रहती हैं।
बाबा के पास में दवाई नहीं है,
दादी को देता अब दिखाई नहीं है।
बोलती मां फल हैं पुराने पाप के,
हम अब कहें जाते बिना बाप के।
हंसती थी दुनिया जो सोयी हुई है,
दिखता हमारा अब कोई नहीं है।
आंखें हैं तरसती तरसते कान हैं,
आपके बिना न कोई सम्मान है।
मांगता हूं पापा कुछ आज दे दो ना,
एक बार द्वार से आवाज दे दो ना।
©️ *अविरल शुक्ला लखीमपुर-खीरी*
8081001989
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें