बलराम सिंह यादव अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित राम नाम की महिमा

भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ।
राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी।
सोह न बसन बिना बर नारी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो श्रेष्ठ कवि द्वारा रचित बड़ी अनूठी कविता है वह भी राम नाम के बिना शोभा नही पाती।जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार से सुसज्जित होने पर भी वस्त्र के बिना शोभनीय नहीं हो सकती।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सुन्दरकाण्ड के एक प्रसङ्ग में श्रीहनुमानजी लंकेश्वर रावण को यही बात समझाते हुए कहते हैं कि राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती।अतः मद मोह को छोड़ कर विचारकर देखो।हे देवगणों के शत्रु!सभी आभूषणों से सुसज्जित सुन्दर नारी भी बिना वस्त्रों के अर्थात नग्न होकर शोभा नहीं पा सकती है।यथा,,,
राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी।।
  इन चौपाइयों के माध्यम से गो0जी यह स्पष्ट करते हैं कि जैसे शास्त्र में नग्न स्त्री को देखना वर्जित और पाप कहा गया है भले ही सोलह श्रंगार किये हो वैसे ही रामनाम से हीन कविता को देखना,कहना और सुनना भी पाप है।किसी कवि ने कहा है--
जिस भजन में राम का नाम न हो उस भजन को गाना न चहिये।
 हिन्दी के मूर्धन्य कवि केशवदास जी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रँथ रामचन्द्रिका में श्रीहनुमानजी व रावण के सम्वाद में लगभग यही बात कही है।
  अतः निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि काव्य के समस्त गुणों से परिपूर्ण कविता प्रभु के नाम के गुणगान के बिना सुशोभित नहीं हो सकती है और प्रभु के नाम से युक्त कविता सदैव प्रशंसनीय ही होती है, भले ही उसमें काव्यगत विशेषताएं कम हों क्योंकि साधुजन प्रभु के नाम से युक्त काव्य का ही श्रवण, गान और कीर्तन करते रहते हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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