बलराम सिंह यादव अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित राम चरित मानस रहस्य

राम चरित सर बिनु अन्हवाए।
सो श्रम जाइ न कोटि उपाये।।
कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी।
गावहिं हरि जस कलि मल हारी।।
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना।
सिर धुनि गिरा लगति पछिताना।।
  ।श्रीरामचरितमानस।
  श्रीसरस्वतीजी की यह दौड़कर आने की थकावट रामचरितरूपी सरोवर में नहलाये बिना दूसरे करोड़ों उपायों से भी दूर नहीं होती।कवि और पण्डित अपने हृदय में ऐसा विचारकर कलियुग के पापों को हरने वाले श्रीहरि के यश का ही गण करते हैं।संसारी अथवा साधारण मनुष्यों का गुणगान करने से सरस्वतीजी सिर पीट कर पछताने लगती हैं कि मैं क्यों उसके बुलाने पर आ गई।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---श्री रामचरित रूपी सरोवर में सरस्वती जी का स्नान करना श्री सरस्वतीजी के मुख से श्रीसीतारामजी के सुयश का गान करना है।ब्रह्मभवन को छोड़कर पृथ्वी पर वेगपूर्वक आने से सरस्वती जी को जो श्रम हुआ वह श्रीरामचरित के प्रेमपूर्वक कथनरूपी अमृतकुण्ड में स्नान किये बिना कैसे छूट सकता है।विद्वज्जन ऐसा विचारकर प्रभु के गुणों का गान करते हैं।श्री सरस्वती जी किसी कवि की मिथ्या स्तुति जानने पर पाश्चाताप करने लगती हैं।प्रभुश्री राम गिरापति हैं।श्रीसरस्वतीजी कठपुतली के समान हैं और भगवान राम अंतर्यामी हैं और उस कठपुतली को सूत्रधार की तरह नचाने वाले हैं।प्रभुश्री रामजी अपना भक्त जानकर जिस कवि पर कृपा कर देते हैं उसके हृदयरूपी आँगन में वे सरस्वतीजी को नृत्य कराते हैं अर्थात सरस्वती जी उस कवि के अनुसार काव्य रचना करवाने लगती हैं।यथा,,,
तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी।
सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी।।
सारद दारुनारि सम स्वामी।
राम सूत्रधर अंतरजामी।।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी।
कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।
  सांसारिक लोगों की प्रशंसा में कही गई कविता प्रायः अत्युक्ति और मिथ्या बातों से भरी हुई होती है।जैसे किसी के मुख की उपमा चन्द्रमा से और स्तनों की उपमा स्वर्ण कलश से दी जाती है जो पूर्णरूपेण असत्य है।ऐसी कविता की रचना से सरस्वती जी अपना सिर पीट कर पछिताने लगती हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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