बलराम सिंह यादव अध्यात्म व्याख्याता पूर्व प्रवक्ता बी बी एल सी इंटर कालेज खमरिया पण्डित

सब गुन रहित कुकबि कृत बानी।
राम नाम जस अंकित जानी।।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही।
मधुकर सरिस सन्त गुन ग्राही।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  इसके विपरीत कुकवि की रची हुई सब गुणों से रहित कविता को भी राम के नाम और यश से युक्त जानकर बुद्धिमान लोग उसे आदरपूर्वक कहते और सुनते हैं क्योंकि सन्तजन भौरों की भाँति गुणों को ही ग्रहण करने वाले होते हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  रामनाम जस अंकित कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे किसी राष्ट्र की मुद्रा पर उस राष्ट्र का प्रतीक चिन्ह होता है चाहे वह मुद्रा किसी धातु की हो अथवा कागज,प्लास्टिक या अन्य किसी वस्तु की।यदि वह मुद्रा उस राष्ट्रीय चिन्ह से युक्त है, तभी उसकी मान्यता है और सभी उसका सम्मान करते हैं तथा वस्तु विनिमय में उसका उपयोग करते हैं।बिना राष्ट्रीय चिन्ह के कोई भी उसे ग्रहण नहीं कर सकता है क्योंकि वह अमान्य है।इसी प्रकार राम नाम से युक्त वाणी अथवा कविता का सभी सन्तजन पूर्ण सम्मान करते हैं।जैसे कागज पर भी छपे हुये नोट का सभी सम्मान करते हैं यद्यपि उस कागज का वास्तविक मूल्य उतना नहीं है किन्तु राष्ट्रीय चिन्ह से युक्त वह कागज का नोट अथवा स्टाम्प मूल्यवान माना जाता है।
यहाँ गो0जी ने गुण ग्रहण करने में सन्तों की तुलना भौरों से की है।भौंरा सुगन्धित पुष्पों का रस ग्रहण करता है भले ही वे पुष्प कहीं भी खिले हों।वह पुष्पों के रङ्ग,रूप और जाति का विचार नहीं करता है।वह तो केवल उसकी सुगन्ध व रस से ही सम्बन्ध रखता है।इसी प्रकार सन्तजन भी प्रभुश्री रामजी के नामयश से युक्त कविता को ही प्रिय मानते हैं भले ही वह कविता किसी निम्न जाति के अथवा चांडाल द्वारा रचित क्यों न हो।आदि कवि महर्षि बाल्मीकिजी,सन्त रविदासजी, कबीर, रहीम आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।कवितावली में गो0जी ने राम नाम की महिमा का गान एक पद में निम्नवत किया है---
राम नाम मातु पितु स्वामि समरथ हितु,
आस राम नाम की,भरोसो रामनाम को।
प्रेम रामनाम ही सों, नेम रामनाम ही को,
जानौं नाम मरम पद दाहिनो न बाम को।।
स्वारथ सकल परमारथ को रामनाम,
रामनाम हीन तुलसी न काहू काम को।
राम की सपथ सरबस मेरे रामनाम,
कामधेनु कामतरु मोसे छीन छाम को।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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