बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PNDIT

श्री राम चरित मानस अनुसार कलयुग के प्राणियों का वर्णन


जे जनमे कलिकाल कराला।
करतब बायस बेष मराला।।
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े।
कपट कलेवर कलिमल भांडे।।
बंचक भगत कहाइ राम के।
किंकर कंचन कोह काम के।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जिनका जन्म कठिन कलियुग में हुआ है, जिनकी करनी कौवे के समान है और वेश हँस का है, जो वेदमार्ग को छोड़कर कुमार्ग पर चलते हैं, जिनका कपट का ही शरीर है और कलियुग के पापों के पात्र हैं।जो प्रभुश्री रामजी के भक्त कहलाकर लोगों को ठगते हैं और जो लोभ( स्वर्ण अर्थात धन ),क्रोध और काम के दास हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
   कलियुग को अन्य तीनों युगों से अधिक कठिन व कराल कहा गया है।गो0जी ने उत्तरकाण्ड में कलियुग के अवगुणों का विस्तृत वर्णन किया है।दोहा सँ0 97 से 101 तक।यथा,,
कलि केवल मल मूल मलीना।
पाप पयोनिधि जन मन मीना।।
सो कलिकाल कठिन उरगारी।
पाप परायन सब नर नारी।।
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन।
कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।।
जो कह झूँठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवन्त बखाना।।
 करतब बायस बेष मराला कहने का तात्पर्य यह है कि वेशभूषा तो हँस अर्थात सज्जनों की है और कार्य कौवे अर्थात दुर्जनों के हैं।यही कपट है और चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े यही कलिमल है।वेशभूषा से वंचक अर्थात ठगों को भी समाज में सम्मान मिल जाता है लेकिन अन्त में भेद खुलने पर उनका पतन ही होता है।यथा,,,
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ।
बेष प्रताप पूजिहहिं तेऊ।।
उघरहिं अंत न होइ निबाहू।
कालनेमि जिमि रावन राहू।।
  वेशभूषा से तो वे रामभक्त बनने का स्वाँग करते हैं परन्तु वास्तव में वे लोभ,काम व क्रोध के दास हैं।काम क्रोध लोभ व मोह  का दास होना ही कलियुग के प्रपंच है।कवितावली में गो0जी कहते हैं---
साँची कहौं कलिकाल कराल मैं ढारो बिगारो तिहारो कहा है।
काम को कोह को लोभ को मोह को मोहि सों आनि प्रपंच रहा है।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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