बलराम सिंह यादव पूर्व प्रवक्ता B.B.L.C.INTER COLLEGE KHAMRIA PANDIT. धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानंद पर धामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कृत नाना।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो परमेश्वर एक हैं, जिनके कोई इच्छा नहीं है, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है,जो अजन्मा,सच्चिदानन्द और परमधाम हैं और जो सबमें व्यापक एवं विश्वरूप हैं, उन्हीं भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके नाना प्रकार की लीला की है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  इन पंक्तियों में गो0जी ने ईश्वर के दस विशेषण वर्णित किये हैं।यथा,,
1--एक अर्थात अकेले ही सर्वत्र होने से परमेश्वर एक अथवा अद्वितीय है।मानस में भी कहा गया है--
जेहि समान अतिशय नहिं कोई।
2--अनीह अर्थात इच्छा या चेष्टा रहित,सदा एकरस अथवा अनुपम।
3--अरूप अर्थात जिसका कोई रूप नहीं है।अथवा जो सभी रूपों में व्याप्त है।
4--अनामा अर्थात जिसका कोई नाम नहीं है अथवा जिसके अनन्त नाम हैं।और जो राशि,लग्न,योग,नक्षत्र, मुहूर्त्त एवं सर्वक्रियाकाल से रहित है।
5--अज अर्थात जो अजन्मा है अथवा जो जन्ममरण से रहित है।वह कभी जन्म नहीं लेता है, बल्कि प्रकट होता है।यथा,,
विश्वरूप प्रगटे भगवाना।
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसिल्या हितकारी।
6--सच्चिदानन्द अर्थात सत्य,चेतन और आनन्द से परिपूर्ण।सत अथवा सत्य अर्थात जिसका कभी नाश नहीं होता है।चेतन अर्थात सर्वज्ञ अथवा सब कुछ जानने वाला।आनन्द अर्थात सभी दुखों से रहित।अथवा पूर्णरूपेण हर्ष व शोक से रहित सदा सर्वदा एकरस अखण्ड आनन्दरूप।
7--परधामा अर्थात दिव्यधाम वाले अथवा जिनका धाम सबसे परे है और जो सबसे श्रेष्ठ, तेजस्वी व प्रभाव वाला है।
8--व्यापक अर्थात जो परमाणु व अणुरूप से समस्त ब्रह्माण्डों के सभी प्राणियों में व्याप्त है।
9--विश्वरूप अर्थात जो विराटरूप से सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है।यथा,,
विश्वरूप रघुबंसमनि करहु बचन बिस्वास।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु।।
पद पाताल सीस अज धामा।
अपर लोक अंग अंग बिश्रामा।।
भृकुटि बिलास भयंकर काला।
नयन दिवाकर कच घन माला।।
जासु घ्रान अश्विनीकुमारा।
निसि अरु दिवस निमेष अपारा।।
श्रवन दिसा दस बेद बखानी।
मारुत स्वास निगम निज बानी।।
अधर लोभ जम दसन कराला।
माया हास बाहु दिगपाला।।
आनन अनल अम्बुपति जीहा।
उतपति पालन प्रलय समीहा।।
रोमराजि अष्टादस भारा।
अस्थि सैल सरिता नस जारा।।
उदर उदधि अधगो जातना।
जगमय प्रभु का बहु कलपना।।
अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।
मनुज बास सचराचर बिश्वरूप भगवान।।
10--भगवान अर्थात सभी की उतपत्ति, पालन और सँहार करने वाला,सभी ऐश्वर्यों से युक्त, सम्यक वीर्यवान,यशवान,श्रीवान,
ज्ञानवान व गुणवान तथा वैराग्यवान।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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