बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी, व्याकुल जिया तड़पता है

स्नेहलता नीर गीत
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बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।
मन मिलने को आतुर होकर,
बालक-सरिस मचलता है।


उर से उर का पावन संगम ,
पावन प्रीति हमारी है।
तुम ही तुम हो इस जीवन में,
झूठी दुनियादारी है।


जनम-जनम का रिश्ता अपना ,
नीर-मीन-सा लगता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


मन के कोरे कागज पर नित, 
नाम तुम्हारा लिखता हूँ।
तुम बिन पल लगते सदियों से,
जाग-जाग कर गिनता हूँ।


नाम तुम्हारा ही दिल गाता,
जितनी बार धड़कता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


मन की वीणा के तारों को,
झंकृत तुमने कर डाला।
लगती प्रीति-प्रतीति तुम्हारी
अहसासों की मधुशाला।।


जग क्या जाने इस रिश्ते में,
कितनी अधिक गहनता है।
बिना तुम्हारे प्राण-प्रेयसी,
व्याकुल जिया तड़पता है।


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