*••••••••••••सुप्रभातम्••••••••••*
*रुप घनाक्षरी छंद*
सोख लेत तम भ्रम दम्भ सब भक्तन के|
हृदय भक्ति के सुर सरिता उतार देत||
करें जो गुमान दैत्य सुर नर मुनि गण|
ग्रीष्म ऋतुराज के गुमान सब झार देत||
सूर्य के भीषण ताप चाल महासागरों के|
रूप शीत चन्द्रमा के क्षण में ही गार देत||
प्रेम से खिलाये प्रभु छिलका भी पान करें|
एक एक चावल पै स्वर्ग तक वार देत||
चंचल पाण्डेय 'चरित्र'
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
चंचल पाण्डेय 'चरित्र'
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