त्रिभंगी छंद
१
जय जय शिव शंकर,जय प्रलयंकर, जय अभ्यंकर, नग वासी !
हे अज विश्वेश्वर, जगत महेश्वर, हे कालेश्वर, सुख राशी !!
हे त्रिगुणातीता, परम पुनीता ,करहु अभीता,भय हारी !
धरि शीश सुधाकर,हे करुणाकर, भस्म रमाकर, सुख कारी !!
कर भस्म अनंगा ,सिर धरि गंगा,भंग तरंगा, त्रिपुरारी !
गौरी पति शंकर ,प्रभु प्रलयंकार, रूप भयंकर, शिव धारी !!
नागन उर माला ,कटि मृगछाला,दीन दयाला, वृषभ चढ़े !
नाचहिं वैताला, होहिं निहाला ,भूत कराला ,चलत बढ़े !!
चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली उ० प्र०
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