डा.नीलम

कुछ यूं ही.......


वार पर वार वो करते रहे हमें मिटाने को
हम भी हर वार सहते रहे उन्हें जिताने को


उनको रुसवा कर कैसेहँसने देता जमाने को
जख्मों को छिपा हँसता रहा
उन्हें हँसाने को


मरहम हँसी की जख्मों पे लगाता रहा
आँखों को भी समझा दिया
उन्हें रिझाने को


उन्हें मिले हर खुशी जमाने भर की
कतरा-कतरा लहू भी बेचा  उन्हें बचाने को


सजदे में सदा रब की झुक दुआ माँगता रहा 
दुनियां की हर खुशियां
उन्हें दिलाने को।


       डा.नीलम


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