*मैं अलग होऊँगी*
*********////********
राम से पहले सीता कह लो
कृष्ण से पहले राधा
पर शिव-शंकर से पहले
सती और पार्वती नाम नहीं आता
वर्तमान में मैं भी कितने
व्रत- उपवास रख,निर्जल
रहलूं,फिर भी पुरुष-समाज की सदियों से मैं बनी रही परछाई
अब मिथक मैं तोडू़गीं
बनकर सबला
नारीत्व की अबलता से
मैं अलग होऊँगी
रिश्ते-नाते खूब निभाए
घर की चार-दीवारी में
मेरे मैं को खोया मैने अस्तित्व भी भूली चूल्हे- चक्की में
घूँघट की ओट में चेहरा छिपाए
जिस्म की जलालत झेली
कोख मशीन बना डाली
इक चिराग़ की ख्वाहिश में
स्वीकार करती हूँ मैं भी
शामिल हूँ नारीत्व की बर्बादी में
प्रण लेती हूँ इस कुकृत्य से अब मैं अलग होऊँगी
सदियों से झेला जुल्म मैने
अब ना सहन करुँगी मैं
है मेरा भी वजूद जहां में दुनिया को मैं बताऊँगी
अन्याय- अनीति,अनाचार, अतिसार की दुनिया से मैं अलग जहान बनाऊँगी, हर बुराई से *मैं अलग होऊँगी।*
डा.नीलम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें