डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"

हायकु


 धूम्र कहर।
प्रदूषित प्रहर।
धुत्त शहर


 नशे में चूर।
सागर की लहर।
रेत का घर।


 गर्व का हल।
विचारों की  चुहल।
हवा महल


 विष को घोल।
सियासत में झोल।
तौल के बोल।


दंगे दमन।
अमन का चमन।
सत्य वचन।


शासन चंगा।
नंगे का नाच नंगा
दिल्ली का दंगा



मार से जाग।
अराजक ओ नाग।
अशान्ति भाग।


शान्ति या सत्ता ।
भिन्नता में एकता।
ओ,मानवता



झूठ की चाँदी।
जन जन की आँधी
महात्मा गांधी


 
 चाय की प्याली।
खयालों का खयाली।
हवा हवाई।


 हायकु
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, '"प्रेम"
स्व््


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511