डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, "प्रेम"

हायकु


संग हमारे।
एक दूजे के होले।
मितवा प्यारे।



रेशम वाली
कुड़ियां अलबेली।
छमक छल्ली।


जिओ ,जीने दो।
बुरी नजर वालों।
खुदा के  बन्दो।


मझधार मे,
डूबते नाविकों से।
कैसी उम्मीदें।


वफा बेवक्त।
गैर की जरूरत।
हैवानियत।


डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, "प्रेम"


स्वरचित व मौलिक रचना।


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