डा० भारती वर्मा बौड़ाई देहरादून, उत्तराखंड

 


ठिठुरती ठंड 



ठिठुरती सुबहें हैं ठंडी शाम 
धूप बिना अब कहाँ आराम 


चाय गरम और संग पकौड़े 
देख इन्हें हर कोई खाने दौड़ें 


ठिठुरती ठंड लो कहने आयी 
कोई मुझे भी दो शॉल रजाई 


मूँगफली रेवड़ी के दिन आये 
गुड़ पट्टी लड्डू गजक मन भाये 


स्वेटर शॉल उतर नहीं पाते 
शाम हुई झट हीटर लगाते


नानी घर के क्या हैं कहने 
सर्दी में हम जब जाते रहने 


तिल लड्डू गाजर का हलवा 
बच्चों बीच कराता बलवा


तब नाना रेफ़री बन कर आते 
हँसते हँसते मीठी डाँट पिलाते 


उढ़ा रजाई झट सबको बैठाते
सुना कहानी हौले ज्ञान बढ़ाते 


नाना घर सर्दी भी मन भाती थी 
अब सर्दी उनकी याद दिलाती।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई


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