........... इंतजार के क्षण...........
शाम का
अन्तिम प्रहर,
नीरवता में शहर।
झील के किनारे खड़ा,
एकांत चिंतामग्न सोच रहा था।
जीवन की
अभिलाषाओं के
बारे में उठते तूफान,
मन की भावनाएं,तम के
साम्राज्य में विलीन हो रहा था।
देखता हूं,
चांद की छाया
को झील की पानी में।
सोचता हूं, आयेगा पूनम
का चांद कब मेरी जिंदगानी में?
यही अरमान,
बसा है मेरे दिल
और जिगर में।जाऊं
कहां,इस दुनिया के वीरान
और सुने खंडहर में?लगता नहीं
है,दिल अब
इस मरघट में।
मन मचल रहा है,
देखने को चांद सा मुखड़ा।
दिल धड़क
रहा है,फिर भी,
रहता उखड़ा उखड़ा।
कैसे समझाऊं,तुमको मन,
कटते नहीं इंतजार के क्षण।
-- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें