देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "

 जीवन-सत्य


फूल   सभी   चुनते  हैं , पर   काँटे   छोड़   देते हैं;
प्यार   सभी   करते  हैं , पर   वादे   तोड़  देते   हैं।
सिर्फ   मैं   ही   नहीं ,  सारा   जमाना   कहता   है;
सुख में  देते  हैं  साथ  सभी, दुःख में छोड़ देते हैं।।


मेरे ख्याल में मानव को ,सिर्फ इंसान रहना चाहिए;
न  तो भगवान  और  न  ही  हैवान  बनना  चाहिए।
इंसान   की  मर्यादा   इंसान   ही  बने  रहने  में  है-
व्यर्थ महत्वाकांक्षी चकाचौंध में,न फसना चाहिए।।


इतिहास  साक्षी है,जब  महत्वाकांक्षाओं ने  घेरा है;
मनुष्य  ने  हमेशा  ही , परिवर्तन का माला फेरा है।
पर   परिवर्तन   के   पर्दे   के  पीछे से , बराबर ही-
मानवता   और    इंसानियत    को   ,  छेड़ा   है ।।


मनुष्य   अपने   आपको  , पहचानना   सिख   ले;
अपने  हाथों से अपनी तकदीर  , बनाना सीख ले।
अगर  इन  नकाबपोश  हमदर्दों  से , बचना है तो-
स्वयं  को  शब्दजालों   से ,  बचाना   सिख   ले।।


फिर   भी   मानव-प्रकृति  ,  नियति  का  दास है;
परिस्थितियों  से भागना , जीवन  का परिहास है।
जिन्दगी   को   सभ्यता   से  ,  जिया   जाय  तो-
जीवन   का    प्रत्येक    महीना  ,  मधुमास   है।।


------------------ देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...