जीवन-सत्य
फूल सभी चुनते हैं , पर काँटे छोड़ देते हैं;
प्यार सभी करते हैं , पर वादे तोड़ देते हैं।
सिर्फ मैं ही नहीं , सारा जमाना कहता है;
सुख में देते हैं साथ सभी, दुःख में छोड़ देते हैं।।
मेरे ख्याल में मानव को ,सिर्फ इंसान रहना चाहिए;
न तो भगवान और न ही हैवान बनना चाहिए।
इंसान की मर्यादा इंसान ही बने रहने में है-
व्यर्थ महत्वाकांक्षी चकाचौंध में,न फसना चाहिए।।
इतिहास साक्षी है,जब महत्वाकांक्षाओं ने घेरा है;
मनुष्य ने हमेशा ही , परिवर्तन का माला फेरा है।
पर परिवर्तन के पर्दे के पीछे से , बराबर ही-
मानवता और इंसानियत को , छेड़ा है ।।
मनुष्य अपने आपको , पहचानना सिख ले;
अपने हाथों से अपनी तकदीर , बनाना सीख ले।
अगर इन नकाबपोश हमदर्दों से , बचना है तो-
स्वयं को शब्दजालों से , बचाना सिख ले।।
फिर भी मानव-प्रकृति , नियति का दास है;
परिस्थितियों से भागना , जीवन का परिहास है।
जिन्दगी को सभ्यता से , जिया जाय तो-
जीवन का प्रत्येक महीना , मधुमास है।।
------------------ देवानंद साहा " आनंद अमरपुरी "
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