.......अभिलाषा.......
चांदनी रात,
सन्नाटे की शुरुआत;
नदी के तीर पर,सामाजिक
कोलाहल से दूर,एकांत वातावरण में
घूम रहा था।पानी का तेज
बहाव शांत माहौल
में गुंजरित,
हो रहा था।अचानक
कुछ फासले पर दो लहरें
उठीं - मचलती,इठलाती,बलखाती,
एक दूसरे से मिलने को
बेकरार।मचा हुआ
था आपस
में अजीब तरह का
हाहाकार।मन ने कहा,
हो न हो,यह मेरी सुनी आवाज़ है।
दिल ने कहा,नहीं,यह
मेरे मित्र व उसकी
प्रेमिका के,
प्रणय भरे गीत की
साज़ है।परंतु,लहरों के
मध्य,फासलों को देखकर,हृदय
आशंका से भर उठता
है।सामाजिक और
पारिवारिक
परंपराएं,बाधाएं,
देखकर मन डर उठता
है।क्या रूढ़िवादिता की दीवारें
इन्हें मिलने नहीं देंगी?
मन नहीं लगता,
इस वीरान
निर्झर में। कब
होगा प्रत्यक्ष - मिलन,
इन दो प्रेमियों का,अभिलाषा
बसी है,मेरे जिगर में?
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
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