............... कल रहें न रहें..............
आज ही की बात हो , कल रहें न रहें।
न बांकी जज़्बात हो , कल रहें न रहें।।
वर्तमान ठीक,भविष्य किसने देखा?
अभी की ही बात हो , कल रहें न रहें।।
भविष्य की चिंता हो, पर कुछ न छोड़ें;
भविष्य की न बात हो,कल रहें न रहें।।
जिसे शुरू किया,उसे जल्द ख़तम करें;
दिन हो या रात हो , कल रहें न रहें।।
जो अब संभव,उसे कल पर क्यों छोड़ें?
कब प्रलय की बात हो,कल रहें न रहें ?
जैसे भी हो , सलीके से ही निबटा लें ;
पांच हो या सात हो , कल रहें न रहें।।
कल परभरोसा मत किया कर "आनंद"
अंधेरी,चांदनी रात हो,कल रहें न रहें।।
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
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