प्रणाम आदरणीय
काव्य रंगोली पत्रिका के अप्रैल 2020 अंक हेतु एक रचना प्रेषित है।
मन में कोई बात नहीं है फिर भी रोता गाता है ।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है ।।
भटका भटका राहें खोजे
मंजिल जाने मिले कभी।
प्रीत निभाने के चक्कर में
मन हारा है सदी सदी।
खोना पाना रीत बनी है
मन खुद को भरमाता है।।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 1
कहते हैं चंचल होता है
रुकता थमता भला कहाँ?
तितली सा उड़ता रहता है
वन उपवन में यहाँ वहाँ।
सूखी धरती में सरिता हो
बाण वही चलवाता है।।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।।2
मन हारा है मन जीता है
मन में सारे रोग भरे।
मन में जादू टोने बसते
मन में जोग कुजोग भरे।।
और कभी आंखों से जी भर देख स्वयं बहलाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 3
एक सहारा मन है मेरा
एक सहारा हैं बातें।
दिन में तुझको जपता रहता
करवट में कटती रातें।
पर मन के मनके गिन गिन के मन में आश जगाता है।
कुछ ना सूझे तो पागल सा बैठ कहीं भी जाता है।। 4
धीरेन्द्र द्विवेदी
ग्राम बभनियांव
पोस्ट लार रोड
जनपद देवरिया
पिन 274505
ई मेल dwivedidheerendra@gmail.com
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