आँगन
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मौसम की ढंडक
गर्मी में बदलने लगी
आ गया वैलन्टाइनडे
हर ओर सज संवर
बाहरें निकलने लगी।
आँगन में
फूल पत्तों ने भी
खुशबू, फैलाई।
कर रहे हैं,
इस दिन का स्वागत,
टेड़ीबियर हाथ में।
पल -पल पसीना पोंछती,
कभी नज़रें झुकाती,
कभी खुल के मुस्कराती
चॉकलेट का आनन्द लेती वो।
बात -बात पर मुस्करा कर
मारूंगी, कहती, नज़र भर देखती मुझे।
कर रही हैं जैसे
मेरा भी स्वागत,
पर क्यों चुप हैं दिल
क्यों सन्नाटा छाया।
आँगन में बैठों,
कुछ पौधें लगा लो
ना ढूंढो कुछ भी इधर-उधर
भर अँजुरी, छिपा लो उसे।
जैसे हैं फूल में रहती खुशबू
अपने आँगन को महका लो
सभी।
अपने आँगन को महका लो सभी।
स्वरचित
डॉ. प्रभा जैन "श्री "
देहरादून
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