डॉ राजीव कुमार पाण्डेय

पिता विषय पर अनुपम काव्य संग्रह है 'सृजक'
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संस्कार भारती गाजियाबाद द्वारा द्वारा आयोजित -'पिता सृजन काव्य महोत्सव'  न केवल अकल्पनीय, अविस्मरणीय था बल्कि एक कीर्तिमान भी था।कीर्तिमान इसलिये कि एक ही प्रांगण में 250 कवियों का कविता पाठ और एक ही विषय 'पिता' पर। 
कवियों ने सृजन किया पिता विषय पर और 'सृजक' के रुप में दूसरा कीर्तिमान बन गया जो अब आपके हाथों में पहुँच रहा है।
कवि,कथाकार,हाइकुकार,समीक्षक डॉ राजीव कुमार पाण्डेय और सुप्रसिद्ध लोकप्रिय हास्यकवि डॉ जयप्रकाश मिश्र के सम्पादन में प्रकाशित 'सृजक' काव्य संग्रह अनूठा,अद्भुत, अनुपम, इसलिए भी है क्योंकि केवल पिता विषय पर हिन्दी साहित्य जगत में प्रथम प्रयास है जिस ग्रन्थ में 116 रचनाकारों को सम्मलित किया गया हो।
संस्कार भारती के अखिल भारतीय संरक्षक पद्मश्री बाबा योगेंद्र जी को समर्पित 'सृजक' काव्य ग्रन्थ देखने में ही आकर्षक नहीं है बल्कि इसकी रचनाएं भी स्तरीय है। इस ग्रन्थ में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कवियों की मनोहारी कविताएं हैं, जो न केवल भावपक्ष की दृष्टि से सम्रद्ध हैं बल्कि कलापक्ष की दृष्टि से बेजोड़ हैं।
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त गीतकार डॉ कुँवर बेचैन, श्री कृष्णमित्र,डॉ वागीश दिनकर, डॉ वी के वर्मा शैदी,डॉ कुँवर वीर सिंह 'मार्तंड' सहित कुल 116 शब्द साधकों की अनुपम रचनाओं से यह ग्रन्थ अमूल्य बन गया है जो सहेजने योग्य है।
बेल्जियम से वरिष्ठ शायर श्री कपिल कुमार,जापान से कोमल सम्बेदना की कवयित्री डॉ रमा सिंह, नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ विधान आचार्य , डॉ वासुदेव काफले, डॉ प्रियम्बदा काफ़्ले की उपस्थिति से सृजक ग्रन्थ को नयी ऊंचाई प्राप्त हुई है।
यह ग्रन्थ कई मायनों में विशेष है। इसमें सभी कवियों को वर्णानुक्रम में प्रकाशित किया गया है।
पिता की महिमा में रचित इस ग्रन्थ की अंतर्यात्रा करते हुए कुछ वानगी के रूप में यहाँ रखने का प्रयास कर रहा हूँ-
डॉ कुँवर बेचैन साहब की ये पंक्तियां ये पंक्तियां भाव विभोर कर देती हैं-
 "ओ पिता तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ्तर के।"


वरिष्ठ कवि एवं शिक्षाविद डॉ अनिल वशिष्ठ कहते हैं-
"घर का पहरेदार खुद को बस बताता है पिता।
प्यार ममता को लुटाकर घर चलाता है पिता।"


पिता दिखने में कितने कठोर किन्तु ह्रदय से कितने कोमल होते हैं यही भाव लिये डॉ अंजू सुमन साधक का यह दोहा-
पिता नारियल से दिखे, धर कठोर आकार।
सन्तानों पर कर रहे,'सुमनों' की बौछार।


वर्तमान परिदृश्य में संस्कारों की कमी आती है तो शायर कपिल कुमार का अंदाज कुछ इस प्रकार होता है-
जो तुतलाते फिरते थे कुछ रोज पहले,
बड़ों से जुबां अब लड़ाने  लगे  हैं।


कोलकाता से साहित्य त्रिवेणी पत्रिका के सम्पादक वरेण्य गीतकार डॉ कुँवर वीर सिंह मार्तंड जी लिखते हैं-
पिता विटप है जीवन की सब तपन सहा करता है।
लता गुल्म सम सन्तानों को छाँव दिया करता है।
माँ की ममता  सन्तानों को बड़ा किया करती है।
किन्तु पिता की इच्छा उनको खड़ा किया करती है।


गीतिकाव्य परम्परा की वरिष्ठ कवयित्री एवं कंठ कोकिला  नेहा वैद का यह मुक्तक-
करें घर भर का हित जैसे कि इक सूरज हैं बाऊजी।
अगर है माँ धरा फिर उसकी हर सज धज हैं बाऊजी।
सहें खुद ग्रहण को करते न उफ लेकिन प्रदूषण से,
हुए हैं आग का गोला कि इक अचरज हैं बाऊजी।


डॉ मधु चतुर्वेदी अपनी रचना में अपने पिता को पुनः अगले जन्म में भी पाना चाहती है-
परमपिता से यही प्रार्थना,जब जब जन्म मिले।
उसके जैसा नहीं,मुझे बस वो ही पिता मिले।


जापान की कवयित्री डॉ रमा शर्मा   भावों के सागर में खो जाती है और कहती हैं-
पिता है बस इक खामोश माली सा
रखता ख्याल अपने बाग के
हर फूल का हर डाली का।


मैंने भी अपने मन की बात इस प्रकार कही है-
पंच तत्व से निर्मित  काया,
सुन्दर तन मन जीवन पाया
रोम-रोम है  ऋणी  तुम्हारा
रग रग में अस्तित्व समाया
वही सृजन के बीज आज तज, महकरहें हैं इस उपवन में।
हम उनको नमन करें।।


वरिष्ठ शायर श्री राज कौशिक की ग़ज़ल का एक शेर  कुछ यूँ हुआ है-
सभी बच्चों को आँगन में तो चलना माँ सिखाती है।
जमाने में चलें।  कैसे पिताजी ही   सिखाते हैं।


डॉ वागीश दिनकर की कविता  में भाव,शिल्प के साथ भाषा भी बड़ी परिमार्जित होती है। कुछ पंक्तियां देख लीजिए-
पूज्य   पिताजी शत शत  मधुमासों को देखें हर्षाएं।
इनका ज्योतित जीवन शत शत शरच्चन्द्रिका छिटकायें।
कवितामय आदेश प्राप्त कर मंगल मोद मनायें हम,
रोग दुख सब दूर रहें सुखमय जिजीविषा मुस्काये।


काठमांडू नेपाल से प्रो0 डॉ विधान आचार्य बचपन की स्मृतियों को कुछ शब्द इस प्रकार कह देते हैं-
मेरे लिये बाबूजी ही झूला थे,घोड़ा थे
थैले के अंदर एक हवाई जहाज थे
बाबूजी ही बिस्किट थे,पानी थे 
बाबू जी मेरे आप ही सब कुछ थे।


श्री चन्द्रभानु मिश्र की के गीत बड़े मार्मिक होते हैं उन्हें पढ़कर, सुनकर करुणा का भाव अनायास आ जाता है-
प्राण तजे थे केवल दशरथ,राम विरह में आहत हो।
अवधपुरी में और न कोई,जिसमें इतनी चाहत हो।
सिर पर लिये कन्हैया अपना, यमुना जी के पानी में।
वासुदेव सा पिता कहाँ है,कान्हा की  निगरानी में।


डॉ जयप्रकाश मिश्र की इन पंक्तियों में पिता के चरित्र को उभारने का प्रयास सफल रहा है-
बोझ ढोता रहा जान जब तक रही।
ना बनूँ  बोझ मैं बात ठनती रही।
खाँसने से कोई जाग पाए नहीं।
सोचकर यह गले को दबाता रहा।


श्री कृष्णमित्र जी की ये श्रेष्ठ पंक्तियां सदा प्रेरणा दायी रही है इस ग्रन्थ के लिये-
पिता कुलवंश की परिपाटियों का जन्मदाता है।
पिता ही पीढ़ियों की सृष्टि का अनुपम विधाता है।
पिता सम्पूर्णता के हर नियम की रूपरेखा है।
पिता है ओम का अक्षर जिसे हर युग ने देखा है।


इस प्रकार पिता के चरणों में 116  रचनाकारों ने अपनी भावांजलि दी है वे इस प्रकार हैं
अभिलाषा विनय,अटल मुरादाबादी,अतर सिंह प्रेमी, अंजु सुमन साधक,डॉ अनिल वशिष्ठ, अनन्त  लक्ष्येन्द्र,अरुण कुमार,अरूण गढ़वाल,अरुण कुमार शर्मा,अशोक राठौर,अशोक विश्नोई,अवधेश कुमार 'निर्भीक',आवरण अग्रवाल,उमाशंकर दर्पण,उमेश श्रीवास्तव, ऊषा भिड़वारिया,ऋतु गुप्ता,कमलेश संजीदा,कपिल कुमार,डॉ कल्पना दुबे,कृष्ण मित्र, डॉ कृष्ण कांत मधुर,कृष्ण कुमार दीक्षित,डॉ कुंवर बेचैन,कुंवर देवेन्द्र,डॉ कुंवर वीर सिंह 'मार्तंड', केशव प्रसाद पाण्डेय,गार्गी कौशिक,गोपाल गुंजन,चंद्रभानु मिश्र,चारु अग्रवाल,जगदीश प्रसाद गुप्त,जगदीशचन्द्र वर्मा 'अनन्त',डॉ जयप्रकाश मिश्र,जयप्रकाश रावत,जयशंकर प्रसाद द्विवेदी,डॉ जयसिंह आर्य, जयवीर सिंह यादव, डॉ तारा गुप्ता,तूलिका सेठ,दिनेश दत्त शर्मा वत्स,दिनेश दुबे'निर्मल',दिव्य हंस दीपक, नन्दकिशोर सिंह,नरेशकुमार,निवेदिता शर्मा ,नीलू गोयल,नेहा वैद, पारो चौधरी, प्रदीप गर्ग 'पराग', प्रद्योत पराशर,प्रशांत दीक्षित, प्रशांत मिश्र, प्रेम सागर 'प्रेम', डॉ प्रियम्बदा काफ़्ले, बाबा कानपुरी,बी एल गौड़, बी के वर्मा शैदी, ब्रजनारायन लाल श्रीवास्तव'बृज',ब्रह्मप्रकाश वशिष्ठ 'बेबाक',भोला सिंह,मदनलाल गर्ग,डॉ मधु चतुर्वेदी, मधुबाला श्रीवास्तव, मनोज गर्ग मन्नू,मंजू गुप्ता,मानसिंह बघेल,मित्र गाजियाबादी,डॉ मीनाक्षी सक्सेना कहकशां,डॉ मीनाक्षी शर्मा,डॉ मेजर प्राची गर्ग,यशपाल सिंह चौहान,रचना वानिया,डॉ रमा शर्मा, रमेश प्रजापति,राजकुमार  शर्मा,राजकुमारसिसोदिया सिसोदिया,राज कौशिक,डॉ राजीव कुमार पाण्डेय,राजीव सिंघल,राजू राज,राजेन्द्रकुमार बंसल,राम चरण सिंह'साथी',रामस्वरूप भास्कर,रीता जय हिन्द,लक्ष्मी शर्मा 'श्री'डॉ वागीश दिनकर,डॉ वासुदेव काफ़्ले,डॉ विधान आचार्य,डॉ वीणा मित्तल, विजय कौशिक, विनय विक्रम, विवेक निर्मल,विनोद कुमार हैसोड़ा,वी के मेहरोत्रा
 स्नेहलता भारती,सरोज त्यागी,डॉ सरोजिनी तनहा,सुधीर कुमार,डॉ सुभाषिनी शर्मा,सुरभि सप्रू,डॉ सुरेश यादव दिव्य,सुरेन्द्र शर्मा 'उदय',संजीव शर्मा,सुषमा सवेरा,सुधीर कुमार,सोनम यादव, सोमवार शर्मा,डॉ श्वेता त्यागी,शशि त्यागी,शुभ्रा दीक्षित,शिव भोलेनाथ श्रीवास्तव,शैलजा सिंह ,डॉ हरिदत्त गौतम 'अमर', हिमाचल कौशिक ।
इन कवियों की ये कविताएं  कविताएं नहीं बल्कि ऋचाएं हैं 
जिन्हें पूजा घर में रखकर नियमित पाठ कर पितृऋण से उऋण हुआ जा सकता  है। इन कविताओं की व्यंजना को ह्रदय में उतारा जा सकता है,आत्मसात किया जा सकता है।
घर के वातावरण को संस्कारमय बनाने के लिये यह ग्रन्थ घर घर पढ़ा जाना चाहिए।
पिता विषय पर अतुलित अपरमित साम्रगी का अनूठा दस्तावेज है यह ग्रन्थ। इन सभी साधकों की लेखनी को बारम्बार नमन करते हुए अखण्डित शुभकामनाएं भी देता हूँ कि इसी प्रकार अपने सृजन में रत रहकर संस्कार की कविताएं रचते रहें।


   'सृजक '
काव्य संग्रह


सम्पादक
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
डॉ जयप्रकाश मिश्र


प्रकाशक
जिज्ञासा प्रकाशन गाजियाबाद
मूल्य- 250 रुपये


प्रस्तुति 
डॉ राजीव कुमार पांडेय
कवि,कथाकार, हाइकुकार,समीक्षक
1323/भूतल वेबसिटी
सेक्टर-2 गाजियाबाद
मो0 9990650570
ईमेल-kavidrrajeevpandey@gmail.com


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