*पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि में एक वर्ष पूर्व लिखी कविता*
रुधिर बहाया है शेरों का, केशर वाली माटी में।
चीख चीख मानवता रोयी,स्वर्ग सरीखी घाटी में।
जिनका यौवन को खिलना था उनकी कलियां मुरझाईं।
गहरे दुख में डूबा भारत , आंखे आँसू भर लायीं।
गणनायक दन्त शावकों के, मुख पर एक तमाचा है।
शेषनाग के फन पर आकर,आतंकी स्वर नाचा है।
अधरों से मुरली त्याग करो,उंगली चक्र चलानाहै।
वीर सपूतों की ललना को ,धीरज आज बंधाना है।
मातम के सागर में डूबा , उच्च स्वरों में गाता है।
पूजित वह जननायक होता ,काट शीश दस लाता है।
शंकर जी त्रिनेत्र खोलकर तांडव सीमा पार करो।
दहशतगर्दी कमर तोड़ दो, भारत का उद्धार करो।
मांगों में सिंदूर नहीं है ,और धधकती ज्वाला है।
रक्षा सूत्रीय अरमानों को, बिल्कुल ही धो डाला है।
आँसू छिपकर बैठ गए हैं ,नौनिहाल के बस्तों में ।
बूढ़ों की लाठी टूट गयी , अंधकार के रस्तों में।
बहुत पतंगे उड़ा चुके हो ,और कबूतर छोड़ लिए।
नामर्दो ने घर में घुसकर , सारे बंकर तोड़ दिए।
बहुत लुटा ली है बिरियानी,आज तलक महमानो पर।
आज तलक ना जूँ रेंगा है, उनके बिल्कुल कानों पर।
ढांढस नहीं बंधा सकते हो,केवल कोरी बातों से।
भूत हमेशा ही माने हैं , लातों वाले लातों से।
करोड़ सवा सौ की शक्ति है, आज आपके हाथों में।
बिल्कुल भी मत देर करो अब,करने को प्रतिघातों में।
सब्र का प्याला छलक चुका है,अब हमको तुम माफ करो।
या तो गद्दी मोह छोड़ दो,या दुश्मन को साफ करो।
जय हिन्द
डॉ राजीव पाण्डेय
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