दिनांक: २७.०२.२०२०
दिन: गुरुवार
शीर्षक: उठी घृणा की धूम
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
आसमान काला हुआ , उठी घृणा की धूम।
उड़े मौत भी गिद्ध बन , देख अमन महरूम।।१।।
कट्टर है नेतागिरी , भड़काते जन आम।
जला रहे, खुद भी जले, बस भारत बदनाम।।२।।
क्या जाने वे दहशती , क्या माने है धर्म।
परहित प्रीत सुमीत क्या , दया कर्म या मर्म।।३।।
शान्ति नेह समरस मधुर, क्या जाने शैतान।
सौदागर जो मौत के , खुद जलते ले जान।।४।।
अफवाहें भड़काव के , फैलाते जन भ्रान्ति।
मार काट दंगा वतन , मिटा रहे वे शान्ति।।५।।
देर हुई सरकार की , कत्ल हुआ जन आम।
निर्दोषी लूटे गये , मौत खेल अविराम।।६।।
आज बने जयचंद बहु ,आस्तीन का सर्प।
वैर भाव हिंसा घृणा , सदा मत्त डस दर्प।।७।।
महाज्वाल प्रतिशोध की, जले पचासों जान।
लुटी खुशी उजड़े चमन , बन मातम हैवान।।८।।
रहो सजग हर पल सबल, अनहोनी आगाज़।
निर्भय नित जीवन्त पथ ,कर आपदा इलाज़।।९।।
कवि निकुंज करता विनत,जागो जन सरकार।
बांटो मत भारत वतन , करो नाश गद्दार।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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