डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष'                                 पुणे, महाराष्ट्र

मोहताज
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भारत- भू की संस्कृति में,पावन प्रेम आख्यान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
नल-दमयंती,हीर-राँझा,ये बड़े प्रेम उपमान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कृष्ण-सुदामा मित्र भाव ये सुंदर समाज  परिधान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
सीताराम औ राधाकृष्ण ये जग में पूजित नाम हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पनपा पवित्र प्रेम भारत में,लोग हुए अनजान हैं,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
प्यार छिछोरे का संग्राहक,ये कैसा इंसान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा से हो बँधा प्यार, तनिक न इसका भान है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
कितना पावन प्रेम हमारा, मर्यादा का आधार है,
फिर भी क्यों हम आज हुए,इस नकली प्रेम के मोहताज हैं।
नकली से असली संस्कृति का होता बंटाधार है,
उत्कृष्ट संस्कृति को त्याग रहे, अब निकृष्ट के मोहताज हैं।
उच्श्रृंखलता सिखा रही, ये समाज अभिशाप है,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
मर्यादा को दे तिलांजलि, करते प्रेम इजहार हैं,
फिर भी क्यों हम आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
पुलबामा के शहीदों को समर्पित दिन आज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
देशप्रेम ये अमर प्रेम है, इस पर हमको नाज है,
फिर भी हम क्यों आज हुए, बेलेंटाइन के मोहताज हैं।
                      ©डॉ. शेषधर त्रिपाठी'शेष'
                                पुणे, महाराष्ट्र
                                 10/02/2020
मो.नं.-9860878237


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