मुझसे ना किया करो ये धर्म मजहब की बातें,
सुनो! मेरे ईश्वर औऱ तुम्हारे उस रब की बातें।
तुम्हें कुरान प्यारी है और मुझको मेरी गीता,
तुम्हें कट्टरता की, मुझे पसंद अदब की बातें।
देखो छिड़ जाएगी किसी दिन अपनी भी जंग,
मत किया करो तुम मुझसे बेमतलब की बातें।
सच तुमसे सहन नहीं होगा और झूठ मुझसे,
अपने तक रखो मियाँ अपनी अजब की बातें।
इतिहास के पन्नों को पलटकर देखना कभी,
फिर आकर करना तुम मुझसे तब की बातें।
बस हवाई किले बनाते हो तुम बरगलाने को,
दुनिया जानती है नहीं की तुमने ढब की बातें।
वक़्त के साथ खुद को भी बदलना सीखो तुम,
"सुलक्षणा" दिखा आईना करती अब की बातें।
कोई नतीजा नहीं निकलना अपनी बहस का,
आओ अपनी अपनी छोड़ करें सब की बातें।
©® डॉ सुलक्षणा
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