*प्रभात वंदन*
नव दीप जले हर मन में,
अब तो भोर हुई हुआ उजियारा।
लगे विहग धरा में चहकने,
रवि किरणों से जग सजे सारा।।
बहे पावन सरिता का जल,
हिमशिखरों पर लालिमा छायी।
बनकर ओस की बूँदें छोटी,
जल मोती यह मन को भायी ।।
भानू की अब चमक देखकर,
छिप गये तारे हुआ उजियारा।
सजाया है जग निर्माता ने,
नभ जल थल सुंदर प्यारा।।
......भुवन बिष्ट
रानीखेत( उत्तराखंड)
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
भुवन बिष्ट रानीखेत( उत्तराखंड
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