*हम खुद ही बिछाते हैं काँटे*
*अपनी राह में।।।।मुक्तक।।*
क्यों दिल में इतनी नफरत
और गुबार पाले है।
आँखों में लिये घूमता तू
ये कैसे जाले है।।
जीवन का सफर तय होता
अमन ओ सकूं से।
तू खुद ही क्यों बना रहा पांव
अपने में छाले है।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस*
*बरेली।*
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8218685464
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