इंसान हो इंसानो वाली अच्छी सी आदत रखो,
शर्मो हया की थोड़ी ही सही मग़र नज़ाकत रखो,
अपने तो अपने गैर भी तुम्हारे हो जायेंगे,
घमण्ड की जगह थोड़ी तो तुम शराफ़त रखो,
कोई नही हरा सकता जिसके बुलन्द हो हौसले,
तुम शेर हो गिद्धों के बीच थोड़ी तो हिम्मत रखों,
कभी हमसे भी आइये मीठी चार बातें करने,को
खुद के न सही मग़र दोस्तो के लिए थोड़ी तो फुर्सत रखो,
न उलझो तूम जमाने भर की बेकार सी बातों में,
बस दिल मे अपने सभी के लिए भाव रफाकत रखों,
जैसा करनी वैसी भरनी निश्चित ही होती है,
बस वक्त के साथ सच्ची और पक्की सोहबत रखो।
गायत्री सोनू जैन मन्दसौर
स्वरचित मौलिक रचना✍
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