"लड़कपन का ईश्क़"
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चले जो धूप में....
तो पैर छिलने लगे
और चले जो ईश्क़ में....
तो दिल जलने लगे
ये लड़कपन का ईश्क़ था
जो सर चढ़ कर बोलने लगे थे
खाये जो ठोकर तो सर पकड़ कर रोने लगे
लाख समझाया था इस दिल को
..….......लेकिन.....
ये अपने हुनर पर इतराने लगे
खुद ही जलाया है
अपने ही ठिकाने अपने हाथो से
पर आज फुरसत की ठिकाने ढूँढने लगें
ठोकर खा कर सम्भल तो गया है
डर है मुझे इस बात की
कहीं पैर फिर से ना फिसलने लगे
अब की बार फिसला तो कौन इसे संभालेगा
ये दिल तो आजाद पंक्षी है जनाब
कौन इस पर लगाम लगाएगा ।।
गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली,मस्तूरी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
9772727002
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