"बिक रहा है"
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बिक रहा है....
ये जमी और ये चन्द सितारे
कहीं आसमां तो सूरज की किरणें
कहीं सियासत तो कहीं साँसद की कुर्सियां
कहीं लोगों की भावना तो कहीं मजबूरियां
ये कैसी दौर है आई जमाने में
अब तो रिश्तों के नाम पर लेन-देन चल रहा है
कहीं दुल्हन तो कहीं दूल्हा बिक रहा है
हाय ! रे तमाशा सियासत की
कहीं नेताओं के हाथ देश की धरोहर
तो कहीं देश की ताकत बिक रहा है
डर है मुझे इस बात की
कहीं असत्य के राह पर
सत्य ना बिक जाए
यथार्थ हूँ मैं...
कहीं साहित्य के नाम पर कलम ना बिक जाए ।।
गनेश रॉय "रावण"
भगवानपाली मस्तूरी, बिलासपुर छत्तीसगढ़
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