गंगा प्रसाद पाण्डेय "भावुक"

उनके चेहरे पे,
कई मुखौटे हैं।


वो लाशों पे,
जमे बैठे हैं।


सांसें बोले हैं,
खुलेआम लौटे हैं।


आत्मा मृतप्राय है,
पराधीन ऐंठे हैं।


दर्पण तोड़ते हैं,
मूलतः खोटे हैं।


हुये लाचार हैं,
अकर्मण्य रोते हैं।।


भावुक


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