प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
गीतिका
दिल्ली
धरना से अकुलायी दिल्ली ।
किसने ये सुलगायी दिल्ली।।
टुकड़े पत्थर गरल वाणियाँ,
राह पतन अपनायी दिल्ली ।।
कहीं ही ईंट कहीं कि रोड़ा,
आकर भक्त पिटाई दिल्ली।।
खुद न समझे न समझा पाए,
आ बेसुरी बीन बजायी दिल्ली।।
हम करें भरोसा कैसे उन पर,
जिनके हाथ सतायी दिल्ली ।।
इंकलाब से देश निखरता,
पर नारों ही परजायी दिल्ली।।
बदनियती की ढहेगी लंका,
सिया सी दाना पाई दिल्ली।।
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