कविता -किसान कवि
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मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।
दुनियाँ अवरोध बिछाती है ,मैं ठोकर मार हटाता हूँ ।।
कांटों की तो परवाह नहीं ,पर फूलों से डर लगता है ।
मरुथल का तो मैं आदी हूँ ,रस गूलों से डर लगता है ।
आँधी की तेज हवायें तो ,मंजिल आसान बनाती है ।
अंगार साथ ले चलता हूँ ,पिघलाकर प्यास बुझाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।1
है आँख मिचौली जीवन से ,सौ बार मरा फिर आया हूँ ।
मरघट का मैं वासिन्दा हूँ ,कुछ दिन उधार के लाया हूँ ।
है मौत सहेली सी मेरी ,जीवन से रार ठनी रहती ।
इस जन्म मरण के घेरे में ,मैं बार बार फस जाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।2
पैरों में छाले ज्यों पड़ते ,पग की गति बढ़ती जाती है ।
चट्टानें आगे को बढ़कर ,पैरों को खुद सहलाती है ।
दिन का रस्ता दिखलाती है ,खुद नागिन सी काली रातें ।
अवरोधों को आधार बना ,मैं गीत राष्ट्र के गाता हूँ ।
मैं राही हूँ तूफ़ानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।3
सुख दुख सिक्के के पहलू हैं,तो इनका गम करना कैसा ।
ऊपर सबको खाली जाना ,तब साथ न जाएगा पैसा ।
छंदों में द्वंद्व बांधने को , हलधर "की कलम दौड़ती है ।
आशीष मिला धरती मां का,यूं गीत नए लिख पाता हूं ।
मैं राही हूँ तूफ़ानों का ,खुद अपनी राह बनाता हूँ ।।4
हलधर -9897346173
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