होरी लोकगीत
मन की बतियां ,कांसे कहूँ सखी री ।
पिया तो सुनत ,नाही कोई बतियां ।
हम तो सखी री, देखे नाही दुनिया।
पिया तो हमारे भएल परेदेसिया।
मन की बतियां -----
प्यार की भाषा अँखियाँ करे सखी,
बोले तो कैसे, बोले ऐसी बतियाँ।
मन की बतियां -----
हमरे पियाजी अंगरेजी मा बोले,
समझ परे नाही मोहे उनकी पतियाँ।
मन की बतियां -----
चाकी पिसत सारी उमर गुजारी रे,
हमसे चलत अब नाही फटफटिया।
मन की बतियां -----
पाउडर लिपिसटिक कबहुँ ना जानो,
कईसे रिझाउँ ,बनढन के सजनिया।
मन की बतियां ---'
अब तो सखी री,आँख नाही लागे,
विरहा की आग मे, जलूँ सारी रतिया।
मन की बतियां -----
होरिया के रंग में भीजे मोरा तन सखी,
प्रीत के रंग में तोहे रंग दूँ सजनवा।
मन की बतियां---------
इकबार साजन गलवा लगा ले रे,
उमर भर ना माँगे कछु और मनवा।
मन की बतियां ---
इन्दु झुनझुनवाला जैन
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