इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’

हिन्दी चित्रपटीय गीतों में छंद


साहित्य, किसी वाङमय की समग्र सामग्री का नाम है। इस नश्वर संसार में जितना भी साहित्य मिलता है उनमें सर्वाधिक प्राचीनतम ’ऋग्वेद’ है और ऋग्वेद को छंदोबद्ध रूप में ही रचा गया है है। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि उस समय भी कला व विशेष कथन हेतु छंदो का प्रयोग होता था। छंद को यदि पद्य रचना का मापदंड कहें तो किसी प्रकार की अतिशयोक्ति न होगी। एक बात और है कि बिना कठिन साधना के कविता में छंद योजना को कदापि साकार नहीं किया जा सकता।


*वैदिकच्छन्दसां प्रयोजनमाह आचार्यो वटः –*
*स्वर्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वृध्दिकरं शुभम् ।*
*कीर्तिमृग्यं यशस्यञ्च छन्दसां ज्ञानमुच्यते ॥ इति*


हमारी हिन्दी फिल्मों के अत्यंत कर्णप्रिय व मधुर गीत बरबस ही हम सबका मन मोह लेते हैं, एक प्रश्न उठता है कि वस्तुतः उनके कर्णप्रिय होने का राज क्या है? इसका सटीक उत्तर है कि वे किसी न किसी छंद पर आधारित होते ही हैं | यह भी आवश्यक नहीं है कि वे सिर्फ एक ही छंद विशेष में ढले हों अपितु उनके स्थायी व अंतरा में अलग-अलग छंदों का प्रयोग भी देखने को मिलता है | गीतों की यही छंदबद्धता उनमें आकर्षण उत्पन्न करते हुए उन्हें गेय बनाती है | अधिकतर यह पाया गया है कि पुराने फ़िल्मी गीतों का प्रारंभ अधिकतर एक दोहे से हुए करता था जो कि हमारे मन को आह्लादित कर दिया करता था | यथा चंद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा गीत में उसका आरम्भ ‘सब तिथियन का चन्द्रमा जो देखा चाहो आज | धीरे धीरे घूँघटा सरकाओ सरताज|| वाले दोहे से ही हुआ है |


अब विधाता या शुद्धगा छंद आधारित फ़िल्मी गीतों पर एक दृष्टि डालते हैं....


*विधाता छंद' की परिभाषा:*
(यगण +गुरु) x४
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा
यमाता दीर्घ चारों हों विधाता छंद हो जाये
जहां चारों मिलें साथी वहाँ आनंद हो जाये||


: विधाता या शुद्धगा छंद का सूत्र है यगण+गुरुx४ अर्थात ‘यमाता गा यमाता गा यमाता गा यमाता गा’ (यहाँ पर ‘गा’ का तात्पर्य गुरु से ही है) या १२२२ १२२२ १२२२ १२२२.  उर्दू में इसे बहर-ए-हज़ज़ मुसम्मन सालिम भी कहते हैं जिसके अरकान होते हैं ...मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन. इस छंद पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं.


(१)     बहारों फू/ल बरसाओ/ मेरा महबू/ब आया है |
(१२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२)
(२)  किसी पत्थर/ की मूरत से/ मुहब्बत का/ इरादा है |
(३)  भरी दुनियां/ में आके दिल/ को समझाने/ कहाँ जाएँ|
(४)  चलो इक बा/र फिर से अज/नबी बन जा/एँ हम दोनों |
(५) ये मेरा प्रे/म पत्र पढ़ कर/ , कि तुम नारा/ज ना होना|
(६)  कभी पलकों/ में आंसू हैं/ कभी लब पे/ शिकायत है |
(७) ख़ुदा भी आ/समां से जब/ ज़मीं पर दे/खता होगा |
(८)  ज़रा नज़रों/ से कह दो जी/ निशाना चू/क ना जाए |
(९)  मुहब्बत ही/ न समझे वो/ जो जालिम प्या/र क्या जाने |
(१०) हजारों ख्वा/हिशें इतनी/ कि हर ख्वाहिश/ पे दम निकले |
(११) बहुत पहले/ से उन क़दमों/ की आहट जा/न लेते हैं |
(१२)  मुझे तेरी/ मुहब्बत का/ सहारा मिल/ गया होता |
(१३) सुहानी चां/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं | 
(१४) कभी तन्हा/ईयों में भी/ हमारी या/द आएगी |  


यह तो हुई विधाता या शुद्धगा छंद आधारित गीतों की बात.... अब एक दृष्टि छंद ‘गीतिका’ आधारित फ़िल्मी गीतों पर डालते हैं. इसके लिए पहले यह जानना होगा कि गीतिका आखिर है क्या? पिन्गलशास्त्र के अनुसार गीतिका एक छंद है जिसका विधान निम्नलिखित है...


गीतिका में ही छंद गीतिका की परिभाषा:


(गीतिका : चार चरण, १४ पर यति देते हुए प्रत्येक में १४-१२ के क्रम से २६ मात्रा तथा तीसरी ,१०वीं ,१७वी,२४वी मात्रा अनिवार्यतः लघु, कम से कम प्रथम दो व अंतिम दो चरण समतुकांत अंत में गुरु-लघु/रगण, कर्णमधुर.)


चार चरणी छंद मात्रिक, अंत लघु-गुरु 'गीतिका'.
योग है छब्बीस मात्रा, प्रति चरण, सुर प्रीति का.
तीन दस सत्रह व चौबिस, चाहिए लघु मात्रिका..
शेष बारह चौदवीं यति, तुक मनोहर वीथिका.


गीतिका का शिल्प सूत्र: ‘गीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका’ है व इसका गणसूत्र: ‘राजभा गा राजभा गा राजभा गा राजभा’ अर्थात २१२२ २१२२ २१२१ २१२ होता है| यहाँ पर भी ‘गा’ का तात्पर्य गुरु से ही है |  का उर्दू विधान में इसे बहर-ए-रमल मुसम्मन महजूफ़ भी कहते हैं| जिसके अरकान फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन होते हैं


इस छंद पर आधारित फ़िल्मी गीतों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं ....


(१)     दिल ही दिल में/ ले लिया दिल/ मेहरबानी/ आपकी 
२१२२/ २१२२/ २१२१/ २१२


(२) ‘आपकी नज/रों ने समझा/ प्यार के का/ बिल मुझे’ (स्थायी) उपरोक्त गीत के अंतरे में निम्नलिखित प्रकार से शिल्प आंशिक रूप से परिवर्तित हो रहा है।


जी हमें मं/ जूर था/ आपका ये/ फैसला (राजभागा राजभागा राजभागा राजभा)
कह रही है/ हर नजर/ बंदापरवर/ शुक्रिया (राजभागा राजभागा राजभागा राजभा)
तद्पश्चात उपरोक्त गीत पुनः मूल शिल्प में आ जाता है 
हँस के अपनी/ ज़िन्दगी में/ कर लिया शा/मिल मुझे
(३)दिल के टुकड़े/ टुकड़े करके/ मुस्कुरा के/ चल दिए
(४)   चुपके चुपके/ रात दिन आँ/सू बहाना/ याद है
(५)हुस्नवालों/ को खबर क्या/ बेखुदी क्या/ चीज है
(६)यारी है ई/मान मेरा/ यार मेरी/ ज़िंदगी
(७)मंज़िलें अप/नी जगह हैं/ रास्ते अप/नी जगह
(८)सरफरोशी/ की तमन्ना/ अब हमारे/ दिल में है
(९)ऐ गम-ए-दिल/ क्या करूँ ऐ/ वहशत-ए-दिल/ क्या करूँ |


आजकल हमारे कुछ विद्वान् हिन्दी ‘ग़ज़ल’ को ‘गीतिका’ भी कह देते हैं जबकि मेरे विचार में इसमें कहे गए मतले और मकते को छोड़कर हिन्दी ‘ग़ज़ल’ विभिन्न छंदों पर आधारित एक ऐसी विधा है जिसमें कहे गए अधिकांशतः शेरों के में प्रति शेर एक मुक्त पंक्ति का प्रयोग होता ही होता है संभवतः इसी लिए आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी ने ‘हिन्दी ग़ज़ल’ को ‘मुक्तिका’ नाम दिया है यद्यपि उनके इस कथन में हमारी पूर्ण सहमति है तथापि आज गीतिका विधा सर्वमान्य हो गयी है |


अब आते हैं भुजंगप्रयात छंद पर तो इस छंद पर आधारित निम्नलिखित गीत की छटा ही निराली है इसका गणसूत्र ‘यमाता यमाता यमाता यमाता’ १२२ १२२ १२२ १२२ व उर्दू में अरकान ‘फईलुन फईलुन फईलुन फईलुन’ है इसका गण विन्यास निम्न प्रकार से है |


तेरे प्या/र का आ/सरा चा/हता हूँ
१२२/ १२२/ १२२/ १२२


वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ
दुपट्टे/ के कोने/ को मुँह में/ दबा के
ज़रा दे/ख लो इस/ तरफ मुस/कुराके
हमें लू/ट लो मे/रे नजदी/क आ के
के मैं आ/ ग से खे/ लना चा/हता हूँ
वफ़ा कर/ रहा हूँ/ वफ़ा चा/हता हूँ


अत्यंत लोक प्रचलित छंद मत्त सवैया या राधेश्यामी छंद जिस पर पंडित राधेश्याम ने राधेश्याम रामायण रची है की बात ही निराली है| अपने बचपन में हम, गाँवों में बच्चे-बच्चे को राधेश्यामी रामायण गाते हुए देखा करते थे |


हमारे द्वारा रची गयी 'मत्त सवैया' में ही 'मत्त सवैया' की परिभाषा  निम्न प्रकार से है.....


*कुल चार चरण गुरु अंतहि है, सब महिमा प्रभु की है गाई.*
*प्रति चरण जहाँ बत्तिस मात्रा, यति सोलह-सोलह पर भाई.*
*उपछंद समान सवैया का, पदपादाकुलक चरण जोड़े.*
*कर नमन सदा परमेश्वर को, क्षण भंगुर जीवन दिन थोड़े..*


प्रायः ऐसा देखा गया है कि चार चरण से युक्त 'मत्त सवैया' छंद में प्रत्येक पंक्ति  में ३२ मात्राएँ होती हैं जहाँ पर १६, १६ मात्राओं पर यति व् अंत गुरु से होता  है | जब से पंडित राधेश्याम ने इस लोकछंद पर आधारित राधेश्याम रामायण रची थी तब से इसे 'राधेश्यामी छंद' भी कहा जाने लगा है!


इस पर आधारित गीत है ‘आ जाओ तड़पते हैं अरमां,  अब रात गुज़रने वाली है.’ (मात्राएँ १६,१६) |


उपरोक्त के ‘जाओ’ शब्द में ‘ओ’ का उच्चारण लघुवत है |


अब आते हैं ‘वाचिक द्विभक्ति’ छंद पर जिसका गणसूत्र है


ताराज यमातागा ताराज यमातागा


२२१ १२२२ २२१ १२२२


मफ़ईलु मफाईलुन मफ़ईलु मफाईलुन  


इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं |


        (१) सौ बार/ जनम लेंगे/ सौ बार/ फ़ना होंगे |
        (२) हंगामा/ है क्यों बरपा/, थोड़ी सी/ जो पी ली है |
        (३) हम तुमसे/ जुदा होके/ मर जायें/गे रो रो के |
        (४) जब दीप/ जले आना/ जब शाम/ ढले जाना |
        (५) साहिल से/ खुदा हाफ़िज़/ जब तुमने/ कहा होगा |
        (६) इक प्यार/ का नगमा है/, मौजों की/ रवानी है |
        (७) हम आप/की आँखों में/ इस दिल को/ बसा दे तो |
        (८) ‘बचपन की/ मुहब्बत को/ दिल से न/ जुदा करना,
          जब याद/ मेरी आए/ मिलने की/ दुआ करना. (स्थायी)


   अंतरा:


         घर मेरी/ उम्मीदों का/ अपना कि/ ये जाते हो


         दुनिया ही/ मुहब्बत की/ लूटे लि/ए जाते हो


         जो गम दि/ए जाते हो/ उस गम की/ दवा करना


यहाँ पर सबसे विशेष बात यह है कि चूँकि फ़िल्मी गीतों की धुन सहज ही कंठस्थ हो जाती है अतः इन धुनों को सहारा लेकर इन धुनों में ही छंद रचना अत्यंत सहज हो जाता है| इसके बाद जब हम मात्राओं व गणों की गणना करते हैं तो वह तत्संबंधित छंद पर एकदम खरी ही उतरती है |


इस प्रकार से हिन्दी चित्रपटीय गीतों जिनती भी विवेचना की जायेगी अर्थात हम जितने ही गहरे उतारते जायेंगें हमें उनमें निहित छंदों से उतनी ही अधिक आनंद की अनुभूति होगी | इति |


(नोट उपरोक्त सभी गीतों में लघु-गुरु का निर्धारण उनके उच्चारण के अनुसार ही किया गया है)


                              लेखक:


-- इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
९१, आगा कालोनी सिविल लाइन्स सीतापुर, उत्तर प्रदेश,
मोबाइल, ९४१५०४७०२०


*साहित्यकार का परिचय:
_________________________
*नाम: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
*पिता का नाम: स्व० श्री राम कुमार श्रीवास्तव
*माता का नाम: श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव
*पता: ९१, आगा कालोनी सिविल लाइंस सीतापुर
*ईमेल: ambarishji@gmail.com


*व्यवसाय: आर्कीटेक्चरल इंजीनियर
*शिक्षा: स्नातक, भूकंपरोधी डिजाइन इंजीनियरिंग कोर्सेज (आई० आई० टी० कानपुर)
*व्यावसायिक सदस्यता: भारतीय भवन कांग्रेस, भारतीय सड़क कांग्रेस, भारतीय पुल अभियंता संस्थान, भारतीय गुणवत्ता वृत्त फोरम, भारतीय तकनीकी शिक्षा संघ, अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स, आर्कीटेक्चरल इंजीनियरिग संस्थान (अमेरिका) आदि.
*संपर्क: मोबाइल : ९४१५०४७०२०, ८८५३२७३०६६, ८२९९१३२२३७, दूरभाष: ०५८६२-२४४४४०


http://www.worldlibrary.in/articles/eng/Ambarish_Srivastava


*काव्य संग्रह :
(१) ‘जो सरहद पे जाए’
(२) ‘राष्ट्र को प्रणाम है’


*प्राप्त सम्मान व अवार्ड:
(१) इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड २००७
(२) सरस्वती रत्न सम्मान
(३) अभियंत्रण श्री सम्मान


* शौक: बाँसुरी वादन व कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ.


सादर धन्यवाद।


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