जयप्रकाश चौहान * अजनबी*

शीर्षक:-
अजीब जिंदगी का अजनबी सफर ...


किस्मत मिली थी मुझे सोने की कलम सी,
लेकिन उसकी स्याही में बहुत जहर था।


निकला था बहुत स्वर्णिम सवेरा मेरा,
लेकिन मिला मुझे दर्दभरा एक पहर था।


पुष्पों से सुसज्जित राह मिली थी मुझे,
लेकिन वहाँ मिला मुझे एक काँटोभरा डगर था।


दोस्त मिले मुझे दुनिया में बहुत ही अच्छे-अच्छे,
लेकिन मिला मुझे वो धोखेबाज हमसफर था।


हसीन वादियों में खिला ये * अजनबी* गुलाब,
लेकिन मिला मुझे मेरे माली के हाथ खंजर था।


जयप्रकाश चौहान * अजनबी*


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