*काह करौं श्याम*
विरहागन ताप पजारै हिया,
टप टप नैना बरसैं आली।
बेसुध सी हाल बेहाल भई,
कुम्हलानी रंगत री लाली।
सखी सांस उसांस पैंजनी चुप,
गैंयां बिनु श्याम उदास रहाय।
बृज गैल सून दोहनि रूसी,
मंथर कालिंदी सखी बहाय।।
बृज गैल जमुना तट मधुवन मँह ,
भरमावत रसिया वनमाली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*
टोना सो करा नटखट कान्हाँ,
सखी भूलि गई सिंगार बरै।
बेनु बजाय रिझाय लई,
छलिया बृजराज री! चित्त हरै।।
कारो कनुआ मनभाय गयो,
मोय नारी लगैं अंखियाँ काली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*
वादा झूठे सब सपने टूटे,
काय छांड़ि चले मथुरा जू कहो ।
मृगतृष्ना सी हिय चाह विकल,
निशि वासर विरहा ताप सहौ।।
श्मसान भयो वपु श्याम बिना,
बेसुध सी भई बृज की लाली।।
*कुम्हलानी रंगत री.......*
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें