दोहे
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कैंची नहीं सुई बनो,
क्षण क्षण सिलती कन्थ,।
टूटे दिल जो जोड़ दे,
वही सन्त का पन्थ।
वन में देखा वृक्ष को,
जिस पर फल ना फूल।
ऐसे भी कुछ नर दिखें,
जिनका जीवन शूल।
मन की पीड़ा मन रखो,
मुख से कहो न मीत।
सुनकर इस संसार में,
लोग हंसे विपरीत।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड
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