कैलाश , दुबे ,होशंगाबाद

नफरत की आग क्यों लगायें हम ,
किसी के सीने में ,


ऐ यार मजा तो आता है सिर्फ बस ,
भाईचारे से जीने में ,


अपने सीने में भी बदले की आग है ,
पर दफन कर दो उसे भी ,


जियो मौज से अब ऐ दोस्त मेरे ,
मजा आता नहीं गरदिश से जीने में ,


कैलाश , दुबे ,


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