कौशल महंत"कौशल"

,       *जीवन दर्शन भाग !!२३!!*


★★★
आता जब घर में कभी,
            कोई भी त्योहार।
खाता लड्डू माँग कर,
            दो के बदले चार।
दो के बदले चार,
           नहीं फिर भी मन भरता।
छुपकर करता खोज,
           किंतु माता से डरता।
कह कौशल करजोरि,
          सभी का मन सुख पाता।
दबे पाँव रह शांत,
         रसोई में जब आता।
★★★
मिलता बचपन का हमें,
            एक बार दिन चार।
मनुज जनम सुखधाम का,
           यह ही होता सार।
यह ही होता सार,
           नहीं कोई दुख पीड़ा।
रहकर हरपल मस्त,
           करे मनभावन क्रीड़ा।
कह कौशल करजोरि,
            सदा पुष्पों सम खिलता।
बचपन है अनमोल,
            दुबारा कब है मिलता?
★★★
पावन अमोल है अतुल,
           बचपन के कुछ वर्ष।
सोच समझकर देख लो,
           सिर्फ मिला था हर्ष।
सिर्फ मिला था हर्ष,
           वही बचपन था प्यारा।
मिले नहीं क्षण एक,
            लगा दो जो धन सारा।
कह कौशल करजोरि,
            समय था बहुत सुहावन।
बचपन का मनभाव,
           सदा होता है पावन।।
★★★


कौशल महंत"कौशल"
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