, *जीवन दर्शन भाग !!४१!!*
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ममता का आँचल वही,
वही पिता का प्यार।
पढ़लिख वापस आ गया,
अपना घर संसार।
अपना घर संसार,
सभी को लगता प्यारा।
यह ही है वह धाम,
जहाँ मन रहे हमारा।
कह कौशल करजोरि,
वहीं रहती है समता।
प्रेम पिता का पुण्य,
मातु की वह ही ममता।
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चाहत मन में है यही,
संग बँटाये हाथ।
सुधारने घर की दशा,
चले पिता के साथ।
चले पिता के साथ,
आय अर्जित करनी है। धन बिन बनी विशाल,
रिक्त खाई भरनी है।
कह कौशल करजोरि,
रहे क्यों जीवन आहत।
सुखमय हो घरबार,
पूर्ण हो सबकी चाहत।।
★★★
जाता है निष्काम मन,
स्वयं ढूँढने काम।
जो करते संसार के,
सब जनमानस आम।
सब जनमानस आम,
जरूरत करने पूरी।
कर कोई व्यापार,
करे कोई मजदूरी।
कह कौशल करजोरि,
तभी है घर चल पाता।
घर का जिम्मेदार,
काम करने जब जाता।।
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कौशल महंत "कौशल"
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