, *जीवन दर्शन भाग !!३०!!*
★★★
पढ़ना चाहा ध्यान से,
साँझ दुपहरी प्रात।
पर होते जो मनचले,
करते हैं उत्पात।
करते हैं उत्पात,
विध्न करते पढ़ने में।
आता है आनंद,
सदा इनको लड़ने में।
कह कौशल करजोरि,
कहाँ आता है गढ़ना।
इनको अपना भाग्य,
नही चाहें यह पढ़ना।
★★★
शिक्षा का मंदिर वही,
जहाँ मिले नित ज्ञान,
शिष्य भक्त बन कर रहें,
गुरुवर ज्यों भगवान।
गुरुवर ज्यों भगवान,
पढ़ाते ध्यान लगाकर।
करे जगत-निर्माण,
शिष्य का भाग्य जगाकर।
कह कौशल करजोरि,
दिला कर कठिन परीक्षा।
इस जीवन का सार,
तभी जब पायें शिक्षा।।
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बोले निज कर जोड़कर,
सब मित्रों के बीच।
धार ज्ञान की बह रही,
तन-मन को लो सींच।
तन-मन को लो सींच,
सभी मिल धरम निभायें।
राग-द्वेष को त्याग,
प्रेम से पढ़ें पढायें।
कह कौशल करजोरि,
सभी की आँखें खोले।
नहीं रखे मन-मैल,
सीख की बातें बोले।।
★★★
कौशल महंत"कौशल"
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