कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(रचना) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २७०
दिनांक: १९.०२.२०२०
वार: बुधवार
विधा: दोहा
छन्द : मात्रिक
शीर्षक: 🇮🇳लहरे ध्वजा तिरंग🇮🇳


दौलत  है   ऐसी  नशा , क्या  जाने  वह  पीर।
इंसानी    मासूमियत , आंखों    बहता    नीर।।१।।


निज सत्ता सुख सम्पदा , मानस बस अनुराग।
प्रीत    न  जाने  राष्ट्र  की, करता  भागमभाग।।२।।


बड़बोला   बनता   फिरा ,अहंकार  मद   मोह।
छलता  खु़द की जिंदगी , दुखदायी    अवरोह।।३।।


राम  नाम   अन्तर्मिलन , भक्ति   प्रेम   संयोग।
शील त्याग परमार्थ  ही , जीवन  समझो भोग।।४।। 


जीवन है सरिता सलिल ,लेकर सुख अवसाद।
ऊंच  नीच  संघर्ष  पथ ,  बहता  है     निर्बाध।।५।।


जीता नर  अभिमान  में , चाहता  है   सम्मान।
वैभव  के  उन्माद  में ,  करें  अपर   अपमान।।६।।


मददगार जीवन सफल , सेवा   समझो   ईश।
जीवन  अर्पित राष्ट्र हित , लक्ष्य राम   वागीश।।७।।


उद्यत हो बलिदान  नित , भारत  मां   दरबार।
अमर सिंह बन शौर्य का , जीऊं बन    खुद्दार।।८।।


वसुधा हो नव पल्लवित ,खिले प्रगति के फूल।
खुशबू  महके  अमन  की , समरसता हो मूल।।९।।


अविरल  धारा प्रेम का , प्रवहित  चित्त  उदार।
सहयोगी   जनता  वतन , मानवता     आधार।।१०।।


भूलें सब निज नफ़रतें , राग  कपट  मन  द्वेष।
जुटें साथ उन्नति वतन, सफल सबल परिवेश।।११।।


दीपक बन सद्ज्ञान पथ , चढ़ें  कीर्ति सोपान।  
तजे  राष्ट्र  से   द्रोह   मन , जुटें  देश  उत्थान।।१२।।


लोकतंत्र   भारत   वतन , लहरे  ध्वजा  तिरंग।
हरित शौर्य सच शान्ति भू , बढ़े  प्रीति  नवरंग।।१३।।


कूजे नवरस काकिली,जन मन गण  सुखधाम।
कवि निकुंज विरुदावली,जय भारत अभिराम।।१४।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(रचना)
नयी दिल्ली


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