विषय: मातृ पितृ पूजन दिवस
दिनांकः १४.०२.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः उजड़ा है कलि बागवां
कलियुग में बस स्वार्थ सब, मातु पिता कहँ मान।
श्रवण कहाँ या राम सम , पाएँ कहँ सन्तान।।१।।
कहँ पाएँ सम्वेदना , कहँ ममता का लाज।
निर्माणक संघर्ष क्या , जाने पूत समाज।।२।।
सींच पौध कुसमित चमन , सुन्दर फलित सुगन्ध।
चढ़े देव नेता शिरसि , भूले सब अनुबन्ध।।३।।
तरुणाई के ज्वार में , भूले सभी अतीत।
मातु पिता गुरु अर्थ क्या , जिसने दी नवनीत।।४।।
दाने दाने चूनकर , बना महल निज पूत।
वही आज मोहताज़ बन , याचक बने कुपूत।।५।।
चाह प्रबल औलाद का , मन्नत भटके बाप।
वही चढ़े उन्नत शिखर , बाप बने अभिशाप।।६।।
रखी कोख नौ मास तक , दी जीवन भू जात।
सींच पयोधर पान से , करे मातु आघात।।७।।
छाया दे आँचल तले , दी ममता नित नेह।
अश्क नैन निर्मल किया , वही मातु बिन गेह।।८।।
पूत आज उत्थान पर , मातु पिता सोपान।
वृद्धाश्रम या सड़क पर , भटके सह अपमान।।९।।
पाला शिक्षित अहर्निश ,संजोए अरमान।
छोड़ जरा ये पूत पथ , एकाकी अवसान।।१०।।
उजड़ा है कलि बागवां , बन पतझड़ माँ बाप।
है कुपूत बिन श्रेष्ठतर , जीवन बिन संताप।।११।।
मानवता नैतिक पतन , क्या श्रद्धा दायित्व।
लखि निकुंज नर लालची , निर्दयता व्यक्तित्व।।१२।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
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