शीर्षकः मचल रही मनमीत मैं
रिमझिम रिमझिम वारिशें , भींगी भींगी नैन।
मचल रही मनमीत मैं, आलिंगन निशि रैन।।१।।
मंद मंद शीतल . पवन , हल्की मीठी धूप।
लहराती ये वेणियाँ ,चन्द्रमुखी प्रिय रूप।।२।।
काया नव किसलय समा ,गाल बिम्ब सम लाल।
नैन नशीली हिरण सी, मधुरिम बोल रसाल।।३।।
चली मचलती यौवना , मन्द मंद मुस्कान।
खनक रही पायल सुभग ,नवयौवन अभिमान।।४।।
लहर दुपट्टा लालिमा , कजरी नैन विशाल।
पीन पयोधर तुंग सम , गजगामिनि बेहाल।।५।।
उतावली साजन मिलन, चपल प्रिया रुख्सार।
छलकाती नैनाश्रु को , मनुहारी अभिसार।।६।।
सजी धजी तन्वी प्रिया , तनु षोडश शृङ्गार।
दौड़ी मृग सम रूपसी , मिलन सजन दिलदार।।७।।
तन मन शीतल साजना, प्रेम सरित रसधार।
मुख सरोज स्मित अधर , बनी प्रीत गलहार।।८।।
बनी सुभग वन माधवी ,कोकिल प्रियतम गान।
मचल रहा अलिवृन्द मन ,गन्धमाद रतिभान।।९।।
सुरभित वासन्तिक कशिश,नँच निकुंज मनमोर।
अलंकार रसमाधुरी , कविता रव चितचोर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें