स्वतंत्र रचना सं. २६८
दिनांक: १६.०२.२०२०
वार: रविवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: 🌦️कण कण से बनता महल🌅
नस नस में बहता रुधिर , देता जीवन दान।
कण कण से बनता महल , जन जन भारत शान।।१।।
दस्यु कहते मरा मरा , राम नाम सत् नाम।
वही आदिगुरु वाल्मीकि , रामायण सुखधाम।।२।।
सत्य कर्म सह न्याय मिल , त्याग शील परमार्थ।
उन्नति होता जन वतन , मिल अक्षर शब्दार्थ।।३।।
सुख दुख से जीवन भरा , खुशी गमों का सार।
मूल्यवान हर वक्त है , चले वक्त संसार।।४।।
धर्म अर्थ भाषा विविध , नीति प्रीति संगीत।
शील धीर गंभीर सत् , मिल जीवन नवनीत।।५।।
खिले काव्य की मधुरिमा , रीति गुणालंकार।
नवरस। गुण शब्दार्थ। नित , कविता का आधार।।६।।
काम क्रोध मद लोभ से , भटक रहा इन्सान।
चलें झूठ छल कपट पथ , हिंसक जग शैतान।।७।।
जन जन मन बनता वतन , अलग अलग मति एक।
खिले प्रकृति पादप कुसुम , हो निकुंज कृति नेक।।८।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
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