कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २६८
दिनांक: १७.०२.२०२०
वार: सोमवार
विधा:दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तड़प रही प्रियतम मिलन
नव    रंगों    से    सजा , आया    फागुन    मास। 
इतराती   रति     रागिनी ,  इठलाती     मृदुभास ।।१।।
जुगनू  बन  निशि साजना , आंख  मिचौली  रास।
तड़प रही  प्रियतम  मिलन , वासन्ती  अभिलाष।।२।।
फूलों  से   कुसमित  चमन , भंवर  मत्त  मधुपान। 
रंगीली   तितली    प्रिये , मिलन   प्रीत   अरमान।।३।।
चन्द्रमुखी   अस्मित    अधर , पैनी   कजरी  नैन।
वासन्ती   रति   रागिनी , प्रीत   विरह  कहं   चैन।।४।।
मना   रही  पिक  गान से ,मधुरिम  अलि  संगीत।
धवल ओस  नैनाश्रु से , रच  सजनी  निशि  प्रीत।।५।।
मन विकार  प्रिय  राग  सब , मिटे  रंग  मुख मेल।
फागुन रस  मन  मधुरिमा , प्रेम सरित्   अठखेल।।६।।
महक रहे तरुवर रसाल , कुसुमित  मुकुल पराग।
बनी  अधीरा  प्रियतमा , मिलन  सजन  अनुराग।।७।।
शीतल मन्द समीर नित , जाग्रत  रति  मन  भाव।
विहंसि चांद लखि चांदनी ,मदन बिद्ध चित  घाव।।८।।
नीलाम्बर   छायी    निशा , सज   सोलह   शृंगार। 
शरमाती   लखि चांदनी , सजन  चन्द्र  अभिसार।।९।।
मन्द मन्द   मुस्कान से ,मना   रहा   निशि   चन्द। 
देख   रागिनी   चांदनी , हर्षित   मन     मकरन्द।।१०।।
जले होलिका विरह की , खिल सरोज मन   नेह।
सुरभि   मनोहर  माधुरी ,  प्रीत  गीत  हर     गेह।।११।। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


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