स्वतंत्र रचना सं. २६८
दिनांक: १७.०२.२०२०
वार: सोमवार
विधा:दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तड़प रही प्रियतम मिलन
नव रंगों से सजा , आया फागुन मास।
इतराती रति रागिनी , इठलाती मृदुभास ।।१।।
जुगनू बन निशि साजना , आंख मिचौली रास।
तड़प रही प्रियतम मिलन , वासन्ती अभिलाष।।२।।
फूलों से कुसमित चमन , भंवर मत्त मधुपान।
रंगीली तितली प्रिये , मिलन प्रीत अरमान।।३।।
चन्द्रमुखी अस्मित अधर , पैनी कजरी नैन।
वासन्ती रति रागिनी , प्रीत विरह कहं चैन।।४।।
मना रही पिक गान से ,मधुरिम अलि संगीत।
धवल ओस नैनाश्रु से , रच सजनी निशि प्रीत।।५।।
मन विकार प्रिय राग सब , मिटे रंग मुख मेल।
फागुन रस मन मधुरिमा , प्रेम सरित् अठखेल।।६।।
महक रहे तरुवर रसाल , कुसुमित मुकुल पराग।
बनी अधीरा प्रियतमा , मिलन सजन अनुराग।।७।।
शीतल मन्द समीर नित , जाग्रत रति मन भाव।
विहंसि चांद लखि चांदनी ,मदन बिद्ध चित घाव।।८।।
नीलाम्बर छायी निशा , सज सोलह शृंगार।
शरमाती लखि चांदनी , सजन चन्द्र अभिसार।।९।।
मन्द मन्द मुस्कान से ,मना रहा निशि चन्द।
देख रागिनी चांदनी , हर्षित मन मकरन्द।।१०।।
जले होलिका विरह की , खिल सरोज मन नेह।
सुरभि मनोहर माधुरी , प्रीत गीत हर गेह।।११।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली
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